
बसपा के दुर्दिनः जहां लहराया नीला परचम, वहीं खोखलीं हो गईं जड़ें
राठ/हमीरपुर: कभी अपने उदय के साथ ही यूपी के बुंदेलखंड के सातों जिलों में अपना परचम लहराकर अलमबरदार बनने वाली बहुजन समाज पार्टी बसपा ने यहीं से न केवल पूरे प्रदेश में बल्कि मध्य प्रदेश में भी अपनी जड़ें जमाई थी। कांग्रेस, वामपंथ का गढ़ रहे बुंदेलखंड में एक नोट, एक वोट का अलख जगाने का काम सबसे पहले हुआ था। जब बसपा अस्तित्व में नहीं थी तब भी बामसेफ के जरिए दलितों, पिछड़ों में सत्ता की भूख जगाने और सामंती प्रथाओं के खिलाफ और सवर्णों के खिलाफ तनकर खड़े होने की कूव्वत यही से मिली थी। एक वक्त ऐसा आया जब बसपा को राजनैतिक ऊर्जा इसी बुंदेलखंड से मिली। बसपा का जितना बड़ा कैडर बुंदेलखंड मंे खड़ा हुआ उतना बड़ा प्रदेश में कहीं नहीं रहा। यहीं से बसपा के कद्दावर नेताओं की पूरी एक जमात निकली मगर वक्त का तकाजा देखिए कि बुंदेलखंड में ही नहीं वरन पूरे प्रदेश में वर्तमान में बहुजन समाज पार्टी कमजोर स्थिति में दिखाई दे रही है। इस समय विधानसभा में इस पार्टी का मात्र एक ही सदस्य है और पार्टी की सर्वेसर्वा सुश्री मायावती अपने पुराने अंदाज में ही कार्य कर रही हैं, जबकि जमाना अब अपडेट करने का है। पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता-समर्थक अब निराश हो चला है। बीएसपी कब अपनी गति पकड़ेगी, यह भी अभी पता नहीं चल रहा है। एक समय था जब पार्टी का नारा था कि ष्चढ़ गुंडों की छाती पर-मोहर लगेगी हाथी परष् और इस नारे ने बहुजन समाज पार्टी के समर्थकों को बेहद सक्रिय कर दिया था और यह पार्टी अपने बलबूते पर प्रदेश में सरकार बनाने में सफल हुई थी। मायावती जी का कड़क प्रशासन आज भी लोगों को याद है। बुंदेलखंड से बाबू सिंह कुशवाहा, नसमुद्दीन सिद्दीकी, दद्दू प्रसाद, बादशाह सिंह, गया चरण दिनकर, हरिओम उपाध्याय आदि ऐसे नाम रहे हैं जो मायावती के मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाते रहे हैं। आज गया चरण को छोड़ इनमें से एक भी नहीं है जो बहुजन समाज पार्टी में हो। बाबू सिंह कुशवाहा ने अपनी अलग पार्टी बना ली है और जौनपुर से सांसद हो गए हैं। वहीं नसमुद्दीन कांग्रेस में सम्मिलित हो गए हैं, तो दद्दू प्रसाद और बादशाह सिंह ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है। कुंवर बादशाह सिंह को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मध्यप्रदेश का प्रभारी भी नियुक्त कर दिया है। वहीं दद्दू प्रसाद हैं कि बांदा चित्रकूट जनपदों में यदि अपने आप को फिट नहीं पा रहे हैं, तो राठ सुरक्षित सीट की ओर भी वह निगाह लगाए हुए है। ऐसे में पार्टी टिकट की पुनः आकांक्षी विधानसभा की पिछली सपा उम्मीदवार चंद्रावती वर्मा, पूर्व विधायक अनिल अहिरवार और जिला पंचायत सदस्य विमलेश कुमारी आदि विधानसभा में सपा टिकट की दावेदार की धड़कनें भी बढ़ी हुई प्रतीत हो रही हैं। सर्वविदित है कि पिछले लोकसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की कमजोर स्थिति देखकर उसका वोट बैंक समाजवादी पार्टी और भाजपा की तरफ सरक गया था। माना जाता है कि समाजवादी पार्टी को बीएसपी का वोट बैंक अधिक संख्या में प्राप्त हुआ था, इसी कारण समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अपेक्षा से भी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी और इस अधिक सफलता ने सपा कार्यकर्ताओं द्वारा पुराने दबंगई के अंदाज को पुनः जनसामान्य के आगे ला दिया, जिससे कि अब सपा भी परेशान है। जहां पूरे बुंदेलखंड में एक समय बहुजन समाज पार्टी का परचम लहराता था। वहीं अब 19 विधानसभा क्षेत्र में इसका एक भी प्रत्याशी विजय प्राप्त नहीं कर सका है। दरअसल पार्टी सुप्रीमो सुश्री मायावती की राजनीति को उनके निकट वाले भी समझने में लाचार हैं। विद्युत विभाग के ष्सिट डाउनष् की तरह वह कब अपने भतीजे आनंद को महत्वपूर्ण पद से नवाज दें और कब उसे निकाल दें,किसी को भी पता नहीं चलता।अपने राजनीतिक जीवन भर परिवारवाद का घनघोर विरोध करने वाली सुश्री मायावती अब अपने ही परिवार राजनैतिक रूप से पोषित कर रही है। रूपयों की माला पहनने वाली और भ्रष्टाचार की आरोपी सुश्री मायावती के कड़क प्रशासन को जनसामान्य आज भी याद करता है। अपनी अलग राजनीतिक सोच के तहत उन्होंने सत्ता में रहते हुए और उसके बाद भी पार्टी में उनके बाद महत्व पाने वालों को एक-एक करके बुरी तरह लाइन में लगा दिया। बहुजन समाज पार्टी के जनक कांशीराम के जमाने में भी सुश्री मायावती ने उनके निकट रहे लोगों को निकाल बाहर कर दिया था। उनमें दीवान रघुनाथ सिंह, रामअचल राजभर,राज बहादुर आदि महत्वपूर्ण नाम थे। तत्कालीन समय में बहुजन समाज पार्टी से संबंधित अधिकांश महत्वपूर्ण नेतागण अपनी बसपाई सोच के चलते समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हो गए। कुछ भाजपा में भी आए।अधिक उछल कूद मचाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य कभी सपा के निकट दिखाई देते हैं तो कभी बीजेपी में मंत्री बन जाते हैं और बाद में जिसे छोड़ते हैं, उसी के विरुद्ध अपना अभियान छेड़ देते हैं। हालांकि अपनी इसी सोच के चलते इस समय वह स्वयं सत्ता से दूर हैं और अपनी पुत्री संघमित्रा को भी सांसदी से दूर करवा चुके हैं। राजनीतिक सूत्रों की माने तो अब सुश्री मायावती ने आसन्न बिहार विधानसभा के चुनाव की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित करने का मन बना चुकी हैं। उत्तर प्रदेश सीमा से सटे 20-25 विधानसभाओं में उनकी पार्टी ठीक-ठाक स्थिति में है, जहां से वह अधिक अपेक्षित हैं। देखना होगा कि आगे बिहार विधानसभा चुनाव में क्या सुश्री मायावती राजनैतिक रूप से कुछ बलशाली हो पाती हैं अथवा नहीं?